<div>एक बार गुरु अमरदास जी ने अपने शिष्यों को एक जगह मिट्टी के चबूतरे बनाने के लिए कहा | जब चबूतरे बन गए तो गुरु साहिब ने कहा: ये ठीक नहीं हैं, इन्हें गिराकर फिर से बनाओ | गुरु साहिब बार-बार चबूतरे बनवाते रहे और गिरवाते रहे | धीरे-धीरे चबूतरे बनवाने वाले और गिरानेवालों की संख्या कम होने लगी | अंत में केवल रामदास जी ही रह गये | कुछ लोगों ने उनसे कहा कि क्या तुम्हारे बुद्धि भी गुरु की तरह भ्रष्ट हो गयी है जो शायद उम्र के कारण सठिया गये हैं | रामदास जी की आँखों में आंसू आ गये, बोले कि अगर गुरु की बुद्धि खराब हो गयी तो फिर दुनिया में कौन बचेगा जिसकी बुद्धि कायम हो | यदि गुरु अमरदास जी मुझे आजीवन चबूतरे बनाने या गिराने में ही लगायें रखेंगे, तो भी रामदास लगा रहेगा | यह है गुरु पर विश्वास और गुरु के हुक्म का पालन !
कहा जाता है कि गुरु रामदास जी ने सत्तर बार चबूतरे बनाये और गिराये | इस पर गुरु अमरदास जी ने कहा: रामदास ! तू भी अब चबूतरे बनाने छोड़ दे | मैं तुझ पर प्रश्न बहुत प्रसन्न हूँ, क्योंकि एक तू ही है जिसने बिना कहे पूरे विश्वास के साथ मेरा हुक्म माना है | गुरु साहिब क्यों चबूतरे बनवाते और गिराते रहे ? केवल इसलिए कि जिस ह्रदय में राम नाम की दौलत रखनी है और जिससे असंख्य लोगों को लाभ प्राप्त करना है, वह ह्रदय भी इसके योग्य होना चाहिये | रामदास जी का अटूट प्रेम देखकर गुरु अमरदास जी ने उन्हें गले लगाया और रूहानी दौलत से भरपूर कर दिया |
साधक के अन्दर जो प्रेम और विश्वास होता है, उसमें सतगुरु की दया-मेहर के साथ शिष्य की साधना भी शामिल होती है | जब तक शिष्य राम नाम के अभ्यास द्वारा गुरु के दिव्य तेज़ को नहीं देख लेता उसके अन्दर सतगुरु के लिए पूर्ण विश्वास पैदा नहीं हो सकता | इस घटना द्वारा गुरु साहिब संगत को समझा रहे हैं कि रामदास जी पूर्ण गुरुमुख थे |
One day Guru Amardas asked his disciples to make earthen platforms. When they got ready then Guru Sahib said,
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कहा जाता है कि गुरु रामदास जी ने सत्तर बार चबूतरे बनाये और गिराये | इस पर गुरु अमरदास जी ने कहा: रामदास ! तू भी अब चबूतरे बनाने छोड़ दे | मैं तुझ पर प्रश्न बहुत प्रसन्न हूँ, क्योंकि एक तू ही है जिसने बिना कहे पूरे विश्वास के साथ मेरा हुक्म माना है | गुरु साहिब क्यों चबूतरे बनवाते और गिराते रहे ? केवल इसलिए कि जिस ह्रदय में राम नाम की दौलत रखनी है और जिससे असंख्य लोगों को लाभ प्राप्त करना है, वह ह्रदय भी इसके योग्य होना चाहिये | रामदास जी का अटूट प्रेम देखकर गुरु अमरदास जी ने उन्हें गले लगाया और रूहानी दौलत से भरपूर कर दिया |
साधक के अन्दर जो प्रेम और विश्वास होता है, उसमें सतगुरु की दया-मेहर के साथ शिष्य की साधना भी शामिल होती है | जब तक शिष्य राम नाम के अभ्यास द्वारा गुरु के दिव्य तेज़ को नहीं देख लेता उसके अन्दर सतगुरु के लिए पूर्ण विश्वास पैदा नहीं हो सकता | इस घटना द्वारा गुरु साहिब संगत को समझा रहे हैं कि रामदास जी पूर्ण गुरुमुख थे |
One day Guru Amardas asked his disciples to make earthen platforms. When they got ready then Guru Sahib said,
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