The spiritual message of Anand Sahib

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'अनंद' को गुरू अमरदास जी की सर्वश्रेष्ठ कृति मन जाता है | आदर भाव से इसे 'अनंद साहिब' कहा जाता है | जब भी गुरू ग्रन्थ का पाठ किसी समागम पर किया जाता है तो संगत पाठी के साथ इसकी पहली पाँच पौड़ी तथा अंतिम पौड़ी को गाती है |

'अनंद' का शाब्दिक अर्थ है - सुख, शांति या आनंद | गुरू अमरदास जी अपनी रचना 'अनंद' का आरंभ इस विचार से करते हैं कि सतगुरु का मिलाप द्वारा आत्मा को परम आनंद तथा पूर्ण शांति की प्राप्ति हो गयी, क्योंकि सतगुरु ने प्रभु के मिलाप का मार्ग प्रशस्त कर दिया | यह आनंद वह सहज अवस्था है जिसमें आत्मा सब दुखों, क्लेशों और चिंताओं से मुक्त हो जाती है |

गुरू साहिब समझाते हैं कि हर व्यक्ति के ह्रदय में आत्मिक आनंद की प्रबल लालसा होती है, परन्तु सतगुरु की दया के बिना उस ऊँची निर्मल अवस्था की प्राप्ति संभव नहीं है | सतगुरु की दया, मोह-ममता की जड़ काटकर, जीव को जगत के साथ बांधकर रखने वाली ज़ंजीर को ही तोड़ देती है | सतगुरु अपनी दया से नेत्रों में दिव्य-ज्ञान का अंजन डाल कर दिव्य-द्रष्टि प्रदान करते हैं तथा उत्तम जीवन जीने की योक्ति सिखाते हैं |

धर्म और दर्शन में परमात्मा के प्रेम और उसके मिलाप से प्राप्त होने वाले आनंद की भरपूर चर्चा की गयी है | परन्तु कोई भी धर्म-ग्रंथो को पड़कर या कथा-कीर्तन सुनकर उस सच्चे आनंद को प्राप्त नहीं कर सका | गुरू अमरदास जी समझाते हैं कि प्रभु के मिलाप के आनंद का निजी अनुभव केवल सतगुरु की रहमत से ही प्राप्त हो सकता है | जब तक आनंद का निजी अनुभव नहीं होता, बाकी सब कुछ जबानी जमा-खर्च, बुद्धि की युक्तियाँ, तथा वाद-विवाद बनकर रह जाता है |

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